Pages

हे राम


he raam - हे राम


एक बार लक्ष्मी जी के विशेष आग्रह पर श्री नारायण ने कलयुग मे पृथ्वीलोक पर श्रीराम के रूप मे भ्रमण पर जाना स्वीकार कर लिया| श्री लक्ष्मी जी सीता के रूप मे और भगवान के अनन्य भक्त नारद मुनि ने अपने हीं रूप मे धरती पर प्रवास करने का मन बनाया| तीनों अलग-अलग दिशाओं मे निकल पड़े| श्री हरि ने सोंचा, देखते हैं पृथ्वीवासियों ने धनुर्विद्या मे कितना विकाश किया है| वे सीधे ओलंपिक आयोजन समिति के क्वालिफ़ाईंग मुक़ाबले मे पहुंचे| वहाँ पहुँचकर अपने अलौकिक तीर-धनुष दिखाये और प्रतिस्पर्धा मे भाग लेने की अनुमति मांगी| आयोजकों ने पूछा – “किस क्लब के बैनर तले हो? तुम्हारे प्रयोजक कौन हैं? और यह क्या पुराने जमाने का नमूना उठा रखा है, हमे उल्लू समझते हो। चलो भागो यहाँ से।“ कुछ समझदार लोगों ने उन्हे बताया, “अरे भाई, क्यूँ हड़काते हो बेचारे को। देखते नहीं बहरूपिया है।“ प्रभु को हिस्सेदारी तो नहीं मिली अलबत्ता कुछ पैसे जरूर इकट्ठे हो गए|

ज्यादा मज़ाक होने के डर से श्री हरि ने तुरंत हीं उस स्थान को छोड़ दिया| उन्हे दूर कहीं से हरिकिर्तन की आवाज सुनाई पड़ी| दो कोस चलने पर पता चला कि आवाज धीरे-धीरे असह्य होती जा रही है| वह बड़े रुष्ट हुए| नजदीक पहुँचकर उन्होने लोगों से वो बड़े-बड़े बॉक्स बंद करने को कहा जिससे इतनी तीव्र ध्वनि निकल रही थी| उन्होने पूछा, तुम कौन होते हो हरि भजन मे बाधा डालने वाले? हरि ने तमक कर कहा, "श्री राम, तुम्हारा स्वामी|" लोगों ने इसे अपने धर्म का घोर अपमान समझा| लिहाजा हरि को वहीं साउंड बॉक्स के सामने बांस मे बांध दिया गया| तीन दिनों तक लगातार अपनी आराधना सुनने के बाद किसी तरह रात मे हनुमान जी की मदद से वे वहाँ से छूटकर निकलने मे कामयाब हो पाये|

दो चार दिन इधर उधर भटकने के पश्चात एक दिन उन्हे नारद मुनि किसी विशाल घर के सामने झाड़ू करते दिख पड़े| हरि को देखते हीं नारद उनके पैरों पर गिर पड़े| पूछने पर पता चला कि नारद अखबार मे इश्तेहार देखकर किसी संगीत स्टूडिओ मे औडिसन देने चले गए थे| वहाँ म्यूजिक डायरेक्टर नारद के कला को धता बताते हुए उनके तेजमयी वीणे पर हीं फिदा हो गया| लिहाजा वीणा छीनकर उन्हे वहाँ से बाहर ढकेल दिया गया| किसी तरह इस सेठ के यहाँ नौकरी मिली, जो बगैर आई डी के उन्हे रखने को तैयार हीं नहीं हो रहा था| यहीं पर वे दिनभर काम करते और रात मे सेठ जी को नारायण कथा सुनाया करते थे|

नारद जी ने श्री हरि की दशा देखकर कहा, “प्रभु, आप बहुत थके हुए लग रहे हैं। चलिये आपको एक ऐसी जगह ले चलते हैं कि आपका मन हरा-भरा हो जाये| वहाँ संगीत का ऐसा मजमा है प्रभु कि स्वर्ग की अप्सराएँ भी लज्जा से डूब मरें|” फिर नारद मुनि हरि को सीधे सोनपुर मेले के गरीब विकाश थियेटर ले गए| कुछ देर इंतेजार के पश्चात नृत्य चालू हुआ| धीरे-धीरे रंग जमने लगा| नारायण और नारद दोनों झूमने लगे| ज्यों-ज्यों नृत्यांगना के बदन से कपड़े कम होते, त्यों-त्यों उड़ते हुए नोटों की बारिश भी बढ़ती जाती, जिसे दो लड़के बींच-बींच मे आकर बटोर ले जाते| दो घंटे लगातार डांस करने के पश्चात नृत्यांगना थक सी गयी| इसी बीच इनटर्वल हुआ| श्री हरि नारद से कुछ बोल पाते, इससे पूर्व हीं पीछे से एक जानी-पहचानी बेहद करुण आवाज उनके कानों मे बोल पड़ी – “प्रभु, बैकुंठ चलें या और नचवाएंगे।“

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

आधुनिक युग मे श्री राम की दुविधा और उनके साथ हो रहे वास्तविक व्यवहार को दर्शाती हुई गहरी व्यंग रचना

राकेश कुमार ने कहा…

बढ़िया लघुकथा