काले बादल नभ की ओर,
टेढ़े मेढ़े पर घनघोर;
विरंजित,
वर्ण परिवर्तित,
घूम रहे चहूँ ओर |
फोड़ धरा के उर अंतर से,
रूप पृष्ठ पे ले दृढ़तर से,
तन से जले,
टॉप से निकले,
निरंतर, नभचोर |
सुनसान हो उष्ण पवन मे,
घूम रहे सबके तन मन मे,
दिखकर दूर – नाश आतुर,
देते मौसम को झकझोर |
गरज गरज करके अभिमानी,
कृष्ण मेघ विचरें बिन पानी,
घिरी चाँदनी,
मनोभावनी,
व्याकुल चन्द्र चकोर |
शीत सोखकर, ताप बढ़ाकर;
स्वार्थ सिद्धि का मूल्य बढ़ाकर,
हिम विशाल को भी पिघलाते,
प्रलयकाल आतंक मचाते,
तन के काले मन के चोर;
बढ़े आ रहे हैं इस ओर |