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स्वप्नपरी


स्वप्नपरी - dream angel


भींड की पुकार सुनकर अति-वृद्ध सन्यासी ने अपनी आँखें खोली| चारों ओर भांति-भांति के दद काठी वाले रंग-बिरंगे ग्रामीण खड़े थे| छोटे बच्चों से लेकर वृद्ध एवं महिलाओं तक के समूह से बना ये जत्था काफी व्यग्र एवं चिंतित दिख रहा था| सन्यासी ने भींड को बैठने का ईशारा किया एवं उनके आने का प्रयोजन पूछा|

“महात्मन, हमलोग सपने वाली परी के आतंक से भयभीत होकर आपकी शरण मे आए हैं,” एक अधेड़ से युवक ने बड़ी शालीनता से कहा, “यह परी रोज किसी न किसी ग्रामीण को सपने दिखाती है, और बाद मे अक्सर उसका विपरीत घटित हो जाता है|”

सन्यासी अविचलित होकर उसकी बातें सुन रहा था| युवक के शांत हो जाने पर उसने बगैर ज्यादा भाव दिये अदना सा प्रश्न किया, “कोई उदाहरण!”

“हाँ महाराज!” भींड मे से एक आवाज आई, “एक सप्ताह पहले यह परी मेरे सपनों मे आई थी| आलीशान कमरे मे मेरे साथ डिनर किया था| अहले सुबह हीं जब मेरी नींद खुली तो मेरी झोपड़ी ढह गयी थी, और दो दिनों तक आमदनी की कमी से भूखा भी रहना पड़ा था|”

मेरी गाय भी चोरी हो गयी थी महाराज, और वो भी उसके दो दिन बाद हीं जब उसने सपने मे मेरी बेटी को दूध पिलाया था| उस रोज तो हम सब खूब हँसे थे, परंतु दो दिनों बाद हीं रोना आ गया,” एक दूसरे व्यक्ति ने जोड़ा|

हाँ बाबा, यह परी हमेशा वेश बदलकर और नए-नए रूप धारण कर सपने मे आती है| कुछ तो कीजिये| पूरा गाँव बदहाल है| सपने मे जबसे इस दुष्टा ने मेरे पति को ओलंपिक रेस मे जितवाया है, तभी से बेचारे गठिया वाला पैर लेकर पड़े हैं| कुछ तो उपाय होगा,” एक औरत चिल्लाई?

सन्यासी ने निर्लिप्त भाव से सर हिलाते हुए कहा, “पहली बात तो यह कि यह परी नहीं चुड़ैल है| पूर्व जन्म मे दुर्गम मौत को प्राप्त कर इसने यह गति पाई| यह लोगों के भीतर अपने अतृप्त कामनाओं को तलाशती है और असंतुष्ट होकर विनाश करती है| तुम क्या, मै भी इसका भुक्तभोगी हूँ| स्वप्न मे आज से हजार वर्ष पूर्व इसने मुझसे शादी का वादा किया था, आजतक कुँवारा हूँ, सत्रह पीढ़ियाँ बीत गईं|”

भींड सन्न थी| लोगों ने सन्यासी के आयु का कम हीं अंदाजा लगाया था| हालांकि, आजतक किसी ने सन्यासी का आना अथवा जाना नहीं देखा, परंतु पीढ़ियों से उनकी कुटिया वहीं थी| लोग निराश लग रहे थे| अब क्या करें, कहाँ जाएँ|

एक व्यक्ति ने हलाश स्वर मे प्रश्न किया, “फिर हम क्या करें बाबा? अपनी रक्षा कैसे करें?”

सन्यासी पहली बार मुस्कुराया, “खुद पर भरोसा करो, सपनों पर नहीं| तुम्हारा विश्वास हीं उसकी पूंजी है| सपनों को भूल जाओ| अफवाहों पर ध्यान मत दो| कर्म करो|”